बचपन में स्कूल के दौरान पढ़ी माखन लाल चतुर्वेदी की एक कविता पुष्प की अभिलाषा आज मुझे याद आ रही है | आजादी हमें भले ही बहुत आसानी से मिल गई थी, जब हमनें जन्म लिया और पाया कि हम गुलाम नहीं है, और आज हम खुली हवा में सांस ले रहे हैं | पन्द्रह अगस्त आने वाला है | हमारी आजादी के पीछे बहुत से लोगों की कुरबानियां हैं और ये वीर शहीद लोगों को याद करने का मौका हैं |
पुष्प की अभिलाषाः माखन लाल चतुर्वेदी
चाह नहीं में सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में
बिध प्यारी को ललचाऊं
चाह नहीं सम्राटों के शव
पर हे हरि डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढ़ूं भाग्य पर इठलाऊं
मुझे तोड लेना बनमाली
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
जिस पथ जायें वीर अनेक |
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