डा. दुर्गाप्रसाद जी जो “जोगलिखी” के नाम से ब्लाग चलाते हैं, उनकी टिप्पणी नें वाकई में मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया की, आखिर एसा कैसे हो गया की में अब तक में इस राजसमन्द की साईट पर राजसमन्द की ही एक ख्यातनाम शख्सियत “कमर मेवाडी जी” का उल्लेख करना कैसे भूल गया ।
तो जानिए कुछ राजसमन्द की ख्यातनाम शख्सियत “कमर मेवाडी जी” के बारे में । कमर मेवाडी जी एक उम्रदराज साहित्यिक प्रतिभावान व्यक्ती है, और इनका जन्म 11 जुलाई सन् 1939 को कांकरोली में ही हुआ ! शुरुआती पढ़ाई के बाद पेशे से शिक्षक रहे | राजसमन्द ज़िले में रहते हुए भी हिन्दी साहित्य से काफी लम्बे अरसे से जुडे हुए है ।
कमर जी लगभग चार दशक से एक साहित्यिक पत्रिका ‘सम्बोधन’ को अपना अनुठा योगदान देते हैं। अभी कुछ समय पुर्व ही इस पत्रिका को देश के बहुत उंचे स्तर के साहित्यिक सम्मान से भी नवाजा गया है, इस बार का जिक्र किसी ब्लाग में भी देखा था पर अभी वह ढ़ुंढ़ने पर भी नहीं मिला है |
बी.बी.सी. हिन्दी पर भी एक दफा उनके साहित्य में योगदान के बारे में छपा था । कमर मेवाडी जी की हर बात कुछ अलग है, अधिकतर वे सफारी सूट पहनते हैं, और हर कहीं आते जाते नहीं हैं। बोली और व्यवहार में सच्चे, सीधे कमर जी साहित्यिक परिचर्चाओं मे बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं । उनका लेखन अनूठा है । कमर जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए जिला, राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बार पुरस्कारों से नवाजा गया है ।
उनकी रचनायेः
तरूण साहित्य संगम
राजसमंद री थापना
विद्रोही री आंधी नावं री पोथी
जय बंगला देस और राजस्थान के शिक्षा विभाग मे उनकी कविताएं छपी !
सम्बोधन एक त्रेमासिक पत्रिका है और इसका मूल्य है 20/- रुपये मात्र | जिसके एडीटर है कमर मेवाडी जी | उनकी ये विशेष पत्रिका सम्बोधन आप भी प्राप्त कर सकते है ! उनको इमेल किजीये या सीधे फोन करने आग्रह करे !
फोन : 02952-223221, 09829161342
इमेल : qamar.mewari@rediffmail.com
himanshu pandya // Mar 23, 2008 at 7:41 am
बन्धुवर
आपक ब्लोग देख्कर बडी खुशी होती है.
मै उदयपुर का रहने वाला हूँ.
मेरा मेल है- himanshuudr@rediffmail.com
Dr Durgaprasad Agrawal // Mar 23, 2008 at 9:41 am
प्रिय भाई, आपकी तत्परता और उदारता के प्रति नतशिर हूं.
दर असल मैंने यह टिप्पणी अपनी एक आम शिकायत के क्रम में ही की थी. हम सर्वत्र यह देखते हैं कि साहित्य को उतना महत्व नहीं दिया जाता, जितने का वह अधिकारी है. मैं यह क़तई नहीं कहता कि साहित्य को आप गैर ज़रूरी महत्व दें, लेकिन कृपया उसे एकदम अनदेखा भी न करें. जैसे इलाहाबादा का महत्व नेहरु के कारण ही नहीं, पंत, महादेवी, निराला के कारण भी है, वैसे ही, कम से कम मेरे जैसों के लिए तो राजसमन्द की कोई तस्वीर क़मर मेवाडी के बगैर पूरी नहीं होती.
आपने मेरे सुझाव पर अमल किया, आभारी हूं. आशा करूंगा कि आप भविष्य में भी अपनेब्लॉग पर राजसमन्द के साहित्य को भी समुचित स्थान देते रहेंगे.
sunil ji sunil // Mar 27, 2009 at 10:01 am
sir iam realy impressed with this page thnak lot
honey // May 31, 2011 at 11:48 am
bahut acha lagaek hasti e bare mai jaankar or nivedan hai ki is site ka thoda background ragin kare n aapki image bhi clear nahi hai thanks for nise post
kunwar ashok gehlot // Jun 24, 2011 at 5:02 am
very good ……………….carry on hindi hamari rastriya bhasa he