अभी कुछ रोज से में हरिवंश राय बच्चन जी की मधुशाला को फिर से पढ़ने सुनने लग गया था, हरिवंश राय जी ने मधुशाला को लिखा ही इतनी तबीयत से है कि कोई भी इसका मुरिद बने बगैर नहीं रह सकता हैं | यू ट्युब पर बडे ही जोरदार विडियो हैं, कुछ मन्ना डै के गाये हुए, कुछ अमिताभ जी के पर हैं सभी एक से बढ़ कर एक |
पर क्या है कि इन्हीं पक्तियों को पढ़ते पढ़ते आज के माहौल के संदर्भ में एक बात याद आ गई | बरसों पहले लिखी कविता और आज के शहरों के बाजारों में बहुत समानताएं हैं |
तो हरिवंश राय बच्चन कि मधुशाला का एक अंश इस प्रकार है किः
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।’।
हमारी सरकार को चूंकि शराब से एक बहुत बडे हिस्से में राजस्व प्राप्त होता है तो आजकल गली गली में, हर सडक पर इतनी मधुशालाएं खुल चुकी है कि पूछो मत | बस आप तो अपने गांव या शहर की एक सडक को पकड लो और चलते चलो, मधुशाला आपको मिल ही जायेगी, इस बात की गारंटी है मियां |
mahendra sinhg // May 3, 2015 at 1:13 am
Really Amazing
Atul Panchal // Jul 1, 2017 at 2:37 am
वास्तविकता तो यही है जनाब