तो जनाब आईये कुछ बातें करते हैं स्टाइल के बारे में । आजकल बुद्धुबक्से में अलग अलग कार्यक्रम में आने वाले नकलची बन्दरो की तरह के मिमिक्री कलाकारों की बडी धूम है । जिसे देखो वही घिसे पिटे चुटकलों पर हंसने हंसाने की बात ही कर रहा है । टी.वी. पर कोई मिमिक्री कलाकार लडकियों या महिलाओं के कपडे पहन कर अपनी अदाओं के जलवे दिखा रहा है तो कोई एसे एसे किरदार की नकल कर रहा है जो कि अपने जमाने के उस्ताद रह चुके हैं ।
फिल्मी अदाकारी के मैदान में अपनी स्वयं की एक अलग पहचान बनाना काफी मुश्किल ही होता होगा, क्यों कि दुनिया में कोई भी आसानी से अपनी मंजिल को नहीं पा लेता है । जिसने अपनी एक स्टाइल या कार्यशैली बना ली वह तो महान ही हो गया, हर किसी आए गए को कोई नहीं देखता या पूछता है, सभी उन्हीं लोगों को याद रखते हैं जो अपने किरदार के अंदर घुस कर अभिनय करता है । गंभीरता के मामले में चाहे अमिताभ हो या संजीव कुमार, या फिर देव आनंद के जेसा हरफन मौला किरदार इन महान कलाकारों नें अपने जमाने में बेहतरीन कार्य किया है ओर कुछ तो अभी भी सबसे आगे ही हैं । क्या किशोर या रफी के गीतों को अब भी कोई मात दे सकता हैं, या फिर क्या शोले के गब्बर के किरदार को कोई भूल सकता है नहीं ना । ये सभी महान कलाकार अपनी एक अलग पहवान बनाने में काफी हद तक सफल रहे थे । तो कहने का मतलब यह है कि चाहे अपनी स्पेशल संवाद अदायगी के कारण या फिर अपने खासे व्यक्तीत्व के कारण ही चर्चित रहे महान कलाकारों कि नकल करना क्या मजाक का भी मजाक नहीं है ।
rajneesh mangla // Sep 23, 2007 at 7:26 am
एक बात सोच रहा हूँ। अभी केवल अदाकारी की बात करें। मेरे ख्याल से कमी अदाकारों या अदाकारी की नहीं, अभिनय शिक्षा और मौलिक विचारों की है। आप महान कलाकारों के नाम गिनाकर आज के कलाकारों को कम नहीं मान सकते। तब लोग कम थे, जो चल गया सो चल गया। आज ऐसा नहीं है।
mamta // Sep 23, 2007 at 8:29 am
सही है पर इन पर कोई रोक नही लगा सकता है।