
राजसमन्द से सौ किलोमीटर की परिधी में हमने अब तक कोई भी घुमने लायक स्थान नहीं छोडा । मोटरसाईकिल उठाई, एक दो दोस्तों को फोन घुमाया वे भी तैयार और हम भी । थोडा बहुत नाश्ता पानी साथ लिया और ये निकल चले हम घुमने । छट्टी के दिन अक्सर एसा ही रूटीन रहता था पहले हमारा । तो कुछ समय पहले हम इस बहुत ही खूबसूरत स्थान पर पहुंचे ।
यह राटासेन माताजी का मंदिर उदयपुर के श्री एकलिंग जी ट्रस्ट के अधीन आता है । मेन राजसमन्द से उदयपुर जाते हुए मेन सडक पर एकलिंग जी से कुछ ही लेफ्ट हैंड साईड पर आगे एक मार्ग आता है । इधर घुमने पर यह कच्चा रास्ता कुछ दुरी पर एक दीवार के वहां रूक जाता है यहां से पैदल ही जाना होता है पहाड पर बने मंदिर पर । सीमेंट से बनी पगडंडी पुरे रास्ते पर है ।
उपर मंदिर में माताजी की श्रंगारित प्रतिमा है जिसके दर्शन करने का लाभ उठा सकते हैं । पहाड से ही दूर देवीगढ़ भी नजर आता है । यहां पर एक स्थान एसा भी है जहां से जोर से आवाज दो तो वह वापस गूंजती हुई आप तक लौट के आती है । हम लोग तो बारिश के मौसम में गए थे तब तो नजारा ही कुछ [Read more →]
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बी. एस. एन. एल ने अभी कुछ रोज पहले भी हमारे जिले राजसमन्द में ब्राडबेन्ड की सेवा शुरु की है । इसके बाद तो हर उपभोक्ता के यहां नेट की स्पीड काफी अच्छी हो गई है । कुछ भी डाटा डाउनलोड करना हो तो बस मिनटों में हो जाता है । 1.5 MBPS की नेट की स्पीड मिल रही है, इस गांव जेसे कस्बे में यह तो वाकई में आश्चर्य की बात ही है ।
एक जमाना था जब हम भी 36.6 KBPS का इन्टरनल माडेम अपने कम्प्यूटर के लिए लाए थे । फिर कुछ समय बाद हमने लिया 56.6 KBPS का एक्सटरनल मोडेम जो और भी ज्यादा अच्छी स्पीड देता था और इससे कनेक्शन बार बार कटता नही् था । फिर सन 2004 मे हमारे जिले में रिलायन्स का मोबाइल आया मानसून हंगामा आफर के साथ । तब हमने भी पहली बार 112 KBPS की स्पीड का मजा पाया । तब से नेट रिलायन्स के मोबाइल पर ही चला रहे थे कि अब राजसमन्द में भी बी. एस. एन. एल का ब्राडबेन्ड शुरु हो गया । चार महिने रुकने और सबकी राय जानने के बाद हमने भी आखिर ले ही डाला बी. एस. एन. एल का ब्राडबेन्ड ।
लेन पोर्ट व वाई फाई मोडेम के विकल्प भी हैं और बी. एस. एन. एल के अलग अलग प्लान्स भी हैं । अब जिसको जैसा उचित लगे वो अपनी पसंद से वेसा प्लान चुन सकता है और हाई स्पीड इन्टरनेट का आनंद ले सकता है । हमने जो पाया वो यह है कि इसकी स्पीड वाकई में काफी तेज है और कुछ भी [Read more →]
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चारभुजा गढ़बोर का मन्दिर अपने आप में बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है और मेवाड के चार धाम में से एक माना जाता है । यहां की जलझुलनी एकादशी बहुत ही प्रसिद्ध है । महाराष्ट्र, गुजराज व राजस्थान के कई स्थानों से लोग इस दिन यहां दर्शनों का लाभ लेने हेतू यहां आते हैं । राजसमंद के गांवो जेसे रीछेड, सांयो का खेडा एवं चारभुजा आदि स्थानो से कई कई लोग जो रोजगार ना या कम होने के कारण बाहर बडे शहरों की ओर पलायन कर गए, उनमें से भी वे लोग साल में इस दिन परिवार सहित यहां अपने गांव में आने को लालायित रहते हैं ।
चारभुजा जी को मंदिर से पालकी, सवारी व गाजे बाजे के साथ, रंग गुलाल उडाते और गीत गाते हजारों की संख्या में लोग तालाब के किनारे स्थित खास स्थल पर ले कर जाते हैं जहां विधिवत स्नान व पूजा अर्चना आदि की जाती है । इस दिन चारों ओर उल्लास का माहौल होता है । औरतें गीत भजन आदि गाती हैं और नृत्य करती है और हजारो लोग भगवान चारभुजा की जय जयकार करते हुए एक विशेष तरह की [Read more →]
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द्धारिकाप्रसाद जी सांचिहर का नाम भी राजसमन्द से जुडा हुआ है । वे एक विख्यात शख्सियत हैं । वैसे तो पेशे से वे गुजरात की एक युनिवर्सिटी में लेक्चरार है, पर उनकी रुचि साहित्यिक कार्यो में भी काफी हैं । सब कुछ, यहीं कांकरोली राजसमन्द में ही तो है उनका शायद इसलिए ही वे इस शहर को भुला ना पाते हैं। वे श्रंगार रस के एक बेहतरीन कवि हैं । राजसमन्द राजस्थान से गुजरात तक के जीवन का सफर भी उनकी अनवरत रचनाओं को रोक नहीं पाया है ।
नायक का नायिका से मिलन और सावन के मौसम की विशेषताओं को इंगित करती उनकी कुछ कविताएं तो बहुत ही सराहनीय है । एक बहुत ही अच्छे और सुसंस्कृत परिवार में जन्म लेने से इनकी साहित्यिक विधाओं मे रुचि काफी लम्बे समय से है, कहा जा सकता है कि द्धारिकाप्रसाद जी सांचिहर श्रंगार रस के एक बेहतरीन कवि हैं । यही नही उन्होनें राजस्थानी और गुजराती साहित्य को आपस में जोडने के लिए भी अपना काफी अच्छा योगदान दिया है । इनका कविताएं सुनाने का अंदाज काफी निराला है । कविताएं सुनाते वक्त इनके चेहरे की भाव भंगिमाएं श्रोतागणों को उस माहौल में डूबा देती है । कई सारी बेहतरीन रचनाएं इन्होनें की है और काफी सारे पुरस्कार भी ये अपनी साहित्यिक गतिविधियों के कारण प्राप्त कर चुके हैं ।
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