क्या किसी ने भगवान को देखा है या फिर क्या कोई है जो उनसे जा कर मिला है, क्या भगवान को पाया जा सकता है ? इस तरह के ढ़ेर सारे सवाल हर व्यक्ती के मन में आते ही होंगे, ए॓सा मेरी व्यक्तीगत सोच है ।
मेरे खयाल से तो मन की शान्ति, या परम आनन्द ही भगवान को पाने के जेसा ही है, चाहै आत्मा या मन की शान्ति किसी भी प्रकार से मिले, कोई शख्स खीर या अपनी कोई पसंद की मिठाई खा कर के भी बडा अच्छा महसुस करता है, तो कोई स्नान, वर्जिश, ध्यान या मेडीटेशन करने के बाद परम आनन्द को प्राप्त करता है, तथा कोई शख्स तब परम आनन्द को प्राप्त करता है जब कोई व्यक्ती अपनी अंगुलियों के पोरों से उसके सिर के बालों मे हल्के हाथों से मालिश करे व थपथपाए ।
परम आनन्द को प्राप्त करना या किसी भी मायने में अपनी मंजिल तक पहुंच जाना लगभग एक जैसा ही है । पर जब कोई व्यक्ती अगर जीवन में मेहनत कर कर के थोडा आगे बढ़ता है तो लोग कहते हैं कि उसके सर पर तो फलां भगवान, फलां बाबा का आशिर्वाद है । मेहनत कोई करे पर नाम किसी का हो जाता है, क्या ए॓से में क्या वह व्यक्ती रत्ती भर भी हीन भावना से ग्रसित नहीं होता है ? कि जो ढ़ेर सारी मेहनत उसने अपनी मंजिल को पाने में की है, उसका सारा श्रेय बिना कारण किसी भगवान, संत बाबा या फिर किस्मत को चला जाता है। क्या उस व्यक्ती की अपनी मेहनत या कर्मों के कोई मायने नहीं हैं ?