जी हां हमारा प्रिय शहर धूल के ढेर में तब्दील हो चुका है ? शहर वासी इसका खामियाजा भी श्वांस संबंधी परेशानियों की अधिकता के रूप में भुगतने लगे है। वैसे भी मार्बल व अन्य खनिज संबंधित इकाइयो के कारण प्रदूषण तो काफी है ही और अब शहर में धूल से वायु की गुणवत्ता का गिरना वाकई में चिंता का विषय बन चुका है। इसकी मुख्य वजह है ये वाहनों की बढ़ती संख्या, रुडिप के पाइप लाइन के प्रोजेक्ट, बहुत ज्यादा औद्योगिकीकरण और हमारी सुस्त सरकार है। धीरे धीरे शहर की आबोहवा में प्रदूषण के कारण जहर का स्तर बहुत बढ़ रहा है ।
धूल रुपी जहर शहरवासीयों के शरीर मेः
सार की बात यही है कि सडके उजाड दी गई हैं, शहर में पिछले कई समय से सीवरेज पाईप के प्रोजेक्ट चल रहे हैं और पाईपों को सडक के बीच दबा कर यूं ही धूल से ढ़का जा रहा हैं जिससे ये है की यही है कि कांकरोली, राजनगर व आस पास शहर में धूल कणों का घनत्व बहुत बढ़ गया है।
शहर की आबोहवा में घुला जहर (धूल कण) अब शहरवासियों के लिए स्वास्थ्य पर असर डालने लगा है। डॉक्टरों के अनुसार बच्चों से लेकर बड़ों तक में धूल कण की अधिकता के कारण श्वांस और एलर्जी की शिकायतों वाले रोगियों की संख्या बढ़ रही है। टूटी सडक और धूल पर आस पास के व्यापारी च निवासी कुछ कुछ देर से पानी डाल रहे हैं ताकी धूल कम उडे और उन लोगों की दुकानों पर कम जमे | पर सारे प्रयास बेकार हो जा रहे हैं | धूल के कारण लगातार बार बार छींकें आना, नाक में सनसनाहट होने आदि की शिकायतें बढ़ रही हैं। साथ ही इसका सर्वाधिक विपरीत प्रभाव ट्रैफिक पुलिस के जवानों पर देखा गया है | पता नहीं कब फिर से सही सडके होंगी | पर एक उम्मीद ये भी है कि अभी चाहे कितनी ही धूल फांकनी पड जाये पर कुछ रोज बाद आसान सुविधाएं भी जनता को ही मिलने वाली है |