नाथद्धारा की संत भूरी बाई अलख:

संत भूरी बाई
मेवाड में यूं तो अनेकानेक संत महत्माओं नें जन्म लिये पर उनमें से महिला संत महात्माओें में भूरी बाई अलख का विशेष महत्व है | उन्हें मेवाड की दूसरी मीरा कहा जाता हैं | 1949 में वे एक सुथार खाती परिवार में जन्मी थी, जन्मस्थान था लावा सरदारगढ़ जो कांकरोली से पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर हैं | वे बहुत अल्पशिक्षीत थी | वे मेवाड के चतुर सिंह जी बावजी महाराज को बहुत मानती थी | छोटी आयु में उनका विवाह नाथद्धारा के एक प्रोढ़ धनी चित्रकार फतेहलालजी से हुआ | अपने छोटे से वैवाहिक जीवनकाल में उन्होने बहुत समस्यायें देखीं | उनके पति ज्यादा जीये नहीं और वे विधवा हो गयी |
गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी उन पर भक्तिभाव और आध्यात्म का बहुत गहरा असर था | साधना भक्ति और संसार में रहते हुए भी संसार से विरक्ति की भावना के कारण ही उस समय बहुत से लोग उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाये , लोग उनके पास आते बैठते, गंभीर विषयों पर चर्चाएं करते पर भूरी बाई का चुप रहने पर ही विशेष जोर था | भूरी बाई कहती चुप हो जाओ, सारे सवालों के जवाब स्वतः ही मिल जायेंगे | संत भूरी बाई से उस समय की बडी गुणी हस्ती थी स्वयं ओशो रजनीश जैसे दार्शनिक व चिंतक भी उनसे मिले थे | संत भूरी बाई बातें मेवाडी भाषा में ही करती थी व बडी से बडी बात कम शब्दों में ए॓से कह जाती थी कि बस सुनने वाले सुनते ही रह जाते थे |
उन्होने कहा है किः
चुप साधन चुप साध्य है,
चुप चुप माहि समाय |
चुप समज्या री समझ है,
समज्या चुप व्हे जाय ||
चुप ही साधन व साध्य हैं , चुप चुप में समाता हैं , चुप समझने वालों की समझ हैं और जो समझे वो चुप हो जायें | आज भी उनकी हर तस्वीर या मुर्ति के पास लिखा “चुप” हमें बहुत ही शातं भाव से चुप हो जाने की प्रेरणा देता हैं | वाकई चुप रहने में बहुत सार वाली बात हैं |
संत भुरी बाई का गिलहरी, पक्षीयों, कु्त्ते सहित अन्य जीव जानवरों से बहुत प्रेम था, कहते हैं कि उनके आश्रम में चाय हमेशा बनती ही रहती थी , लोग बडे भक्ति भाव से उनके पास आते , बैठते | महात्मा भूरी बाई को ‘अलख’ नाम किसी महात्मा संत नें भाव से अभिभूत होकर दिया था। उन्ही नें एक बार कहाः
बोलना का कहिए रे भाई
बोलत बोलत तत्त नसाई।
बोलत बोलत बढै विकारा
बिन बोले का करइ बिचारा।।
उनके नाम पर बहुत से जन सेवा हेतु संस्थाएं चल रही हें जिनमें से उदयपुर की ‘‘अलख नयन मंदिर नेत्र संस्थान’’ उल्लेखनीय है, ये संस्था ग्रामीण क्षेत्रों में नेत्र-चिकित्सा हेतु चिकित्सा शिविर आयोजित करती है व जनता की सेवा कर रही है। 1979 में उनका देहातं हो गया पर वे अपने पीछे बहुत से शिष्यों और समर्थकों को छोड कर गई हैं | नाथद्धारा , सरदारगढ़ उदयपुर सहित कई जगहों पर उनके आश्रम हैं जहां लोग आते हैं |
Raj kothari // Apr 23, 2017 at 4:56 am
Unka chup kehna vichar shant man ka koi pata nahi aur kisi aur hi lok mai pravesh eshi anubhuti hui jab vaha alakh ashram nathdwara aur sardargadh samadhi sthal pe bethe osho premi hu.
Vinod Joshi // May 4, 2017 at 3:33 am
The information given are true and factual. I am strong follower of Bai.
Pl. Send me more information on bai.
Jayant // Jun 4, 2017 at 2:15 am
Maun ki sadhna vaani ka vishay to he nahin, jo koi tippni kar paye….
Rahiman baat agamya ki I
Kahen-sunan ki naahin II
Jo janat, te kahe nahin I
Kahe…. so janat nahin II
देव आनन्द शेखावत // Jun 10, 2017 at 2:10 am
महात्मा भूरीबाई ने सत्य को बहुत पहले ही जान लीया था।आचार्य रजनीश ने उनके बारे में बताया और कहा की वह अदभूत शख्सियत थीं।उन्होने ध्यान को अच्छे से जीया।
shyam lal purohit // Sep 25, 2017 at 11:33 am
ओशो के समर्थन करने के बाद कुछ भी संदेह नहीं रहा।भूरी बाई बुध्धत्व को उपलब्ध सख्सियत थी।
Udai lal gaur // Sep 3, 2018 at 10:44 am
Silence can create ,very silence