पता नहीं क्यों लोगबाग अपनेआप को विभीन्न प्रकार के अंधविश्वासों मे झकड लेते हैं | में अपने आस पास के लोगों को देखता हूं और सोचता हुं कि वे इतना अंधविश्वास क्यों कर रहे हैं | खैर………तो कुछ विचार आजकल जानवरों पर हो रहे ना ना प्रकार के जुल्मों के बारे में प्रेषित है !
बडे शहर और अंधविश्वासः
जयपुर सीटी पैलेस से कुछ दूर सामने हमने फुटपाथ के किनारे बैठा एक आदमी नजर आया, उसके पास एक काले रंग का मरियल सा घोडा बंधा हुआ था | वह अपने पास एक काली रंग की सी तख्ती लिये बैठा था और तख्ती पर लिखा थाः काले घोडे की नाल यहां मिलती है | बहुत से लोग होगें जो ये सुन चुके होंगे कि घर के दरवाजे की चौखट पर यदि काले घोडे की नाल लगवा दो तो बुरी नजरों से बचा जा सकता है | वह आदमी हाथोंहाथ अपने घोडे के पैर में से ठुकी हुई नाल निकाल कर अपने सम्माननिय कस्टमर्स को दे रहा था |
कस्टमर को भी शुभ फल मिलने का विश्वास और गारंटी थी, क्योकि घोडे के पैर से हाथों हाथ निकलवा कर जो लाया था | मुझे यह बडा अजीब लगा पर वहां से लोग वह खरीद रहे थे और कुछ देर बाद वह आदमी फिर से अपने घोडे को परेशान करने में लग जाता है दिन भर में वह ना जाने कितने बार अपने घोडे को कष्ट देता होगा | अब इतने बडे शहर में भी अंधविश्वाश के कारण कई लोग मुर्ख बनाये जा रहे थे | फुटपाथों से लोग जाने कैसी कैसी सस्ती दवाईयां, चुर्ण, भस्म ना जाने क्या क्या लेते हैं वह भी सिर्फ सुनी सुनाई बातों या अपने अति अंधविश्वास के कारण |
कस्बों व गांवो की हालतः
यही हाल भालूओं और बंदर वाले मदारियों का है, वे अपने हित के लिये निरीह जानवरों को ना जाने कैसे कैसे नाच नचाते हैं | बहेलिये व सपेरे तो अभी भी छोटे गांव कस्बों मे यदा कदा दिखा जाते हैं | अब सपेरे भी तो सांप नेवले का खेल दिखाते ही थे, अब उस लडाई में कब कौंनसा जानवर घायल हो जाये | पर परेशानी रोजगार की समस्या से भी है, ये लोग यह काम धंधा छोड देंगे तो कुछ और करना भी तो नहीं जानते ना ! सरकार को चाहिये कि हर शहर गावों में इस तरह के लोगों को चिन्हित करके उनके पुनर्वास और रोजगार, शिक्षण आदि की उचित व्यवस्था करे |
सर्कस आदिः
पुराने सिनेमाघरों की तरह ही आजकल सर्कस की हालते भी खराब है, और बडी ही दयनीय है | उन्हे अब जानवर मिलते नहीं, क्योंकि नियम कडे है और दर्शक सर्कस में ये सब ही तो देखने के लिये आते हैं, आदमी के स्टंट और लडकियों के नृत्य तो टी वी में रोजाना देखे जा सकते हैं | तो इसलिये ही सर्कस की स्थितियां नाजुक ही कही जा सकती है | पहले की बात अलग थी, पर अब सर्कस में जानवरों पर जुल्म ना के बराबर होते हैं |
गांवों कस्बों में फिजुल की सवारियां आदिः
सवारियां बडी होनी चाहिये व ठाठ बाट से निकलनी चाहिये आदि भी एक तरह का अंधविश्वास ही है ! गांवों कस्बों में अभी भी छोटी मोटी बात पर फिजुल में सवारियां निकालने और भोज आदि का बडा रिवाज रहता हैं इससे भी जानवरों को खासकर की बग्गी में जुते घोडे, उंट, हाथी आदि को बडे ही कष्ट उठाने ही पडते हैं | सिर्फ किसी ग्रुप विशेष की प्रतिष्ठा या दिखावे के कारण ये आयोजनों में जानवरों का ज्यादा इस्तेमाल करना उचित नही | एक एक रुपये को हाथी जैसा बडा जानवर अपनी सू्ंड से ले कर उपर बैठे पेसे के भूखे खलबुद्धि महावत को बारम्बार दे, ये कहां की इंसानियत है |
पहले की एक्शन फिल्मों के दृश्यः
पहले कि फिल्मों के दृश्य देखें तो पता चलेगा कि दौडते हुये डाकुओं के घोडे गिर रहे हैं और कहीं कही तो पशुबली आदि के दृश्य भी दिख जाते थे | फिल्मों और एडवर्टाइजमेंट्स के लिये तो यह बहुत अच्छा कदम उठाया गया है कि किसी भी फिल्म आदि की शूटिंग के दौरान जानवरों पर क्रूर बर्ताव ना हो, अगर ये होगा तो कठोर नियमों के कारण फिल्म रोक दी जायेगी | यह सुनकर बहुत अच्छा लगा | चलो कुछ तो अच्छी सोच आयी है,मिडिया में |
उल्लूओं का शिकारः
अंधविश्वास और टोने टोटके के आदि के कारण सांप, उल्लूओं आदि को भी बहुतायत में पकडा जाता है ना जाने लोग कैसी सिद्धियां प्राप्त करना चाहते हैं आज के जमाने में ये सिद्धियां प्राप्त करने की बाते बेतुकी सी लगती है | छोटी जगहों पर अभी भी होली के दौरान एहडा खेलने की प्रथा होती है जिसमें सामुहिक शिकार आदि किये जाते हैं ! इसे रोकना भी बडी चुनौती है |
हरियाली और प्रकृति का हा्सः
कंक्रीट के जंगल बडे होते ही जा रहे हैं और इस कारण भी जानवर मारे जा रहे हैं ! अभी कुछ समय पहले ही पढ़ा कि किसी बडे सरकारी सचिवालय कार्यालय के सामने लगे कई सारे पुराने दरख्त सिर्फ सुरक्षा कारणो से काट दिये गये, उन पेडों पर रहने वाले पक्षीयों आदि का क्या हुआ होगा, कल्पना कर जरा | सोचो किसी कारण से ही सही पर मु्सीपालिटी की जेसीबी का पंजा आपके घरों पर चल जाये तो मिनटों में बडी मुश्किल से बनाये गये आशियाने का क्या से क्या हो सकता है |
कुल मिला कर आजकल वैसे भी तो जानवरों की कई प्रजातियां खत्म होने के कगार पर है पर फिर भी हम लोग इन प्राणियों का महत्व नहीं समझ रहे हैं ये गलत है… क्यों हम ये भुल जाते हैं कि इंसान भी पहले एक जानवर ही था |
जानवरों की मदद कर रही संस्थाये जैसे की पेटा, आईडीए इंडिया आदि को बडी मदद मिलनी चाहिये ताकि सही पैसा सही हाथों में जाये और काम आये | साथ ही भारत की एक ए॓सी हेल्पलाईन या आल इंडिया टोल फ्री नंबर भी हो जहां कोई भी जानवरों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ शिकायत लिखवा सके या बीमार जानवरों की मदद हेतु दरखास्त दे सके |
nilay // Jun 6, 2013 at 11:49 am
achchi site hai !