एक बार मेरे एक हमउम्र मित्र मेरे कार्यस्थल पर आये ! हम अक्सर मिलते थे, बातें करते थे, और पुराने दोस्त थे । मुझसे उन्होने एक सामान का रेट पूछा, वो चीज उनको चाहिये थी । मित्र होने के नाते, मेनें उनको एक दम वाजिब से वाजिब भाव बताया उस वस्तु का ! मित्र ने कहाः में यह ले तो जाता हुं, पर पैसे अभी नहीं है बाद में दुंगा । मेनें कहा भाई नहीं चल सकता है एसा, कम मार्जिन और उधारी ! अव्वल तो हम उधारी में सामान ना तो खरीदते हैं ना ही बेचते हैं ! फिर भी व्यवसाय है तो छोटा मोटा देखना ही पडता है । और उधारी का काम ए॓सा है ना कि दे ओर फिर देख ।
अपन आदमी हैं साफ कहने और सुखी रहने वाले टाईप के ! मुझे पता था कि ये अगर ले गया तो पैसे वापस आने में महीनों लग सकते हैं, मेनें मित्र को साफ मना कर दिया कि नहीं पैसे बाकी रखो तो में नहीं दे सकता हूं । दोस्त नाराज … उनके चेहरे से ही पता चल गया था मुझे ! अगले ही पल मित्र नें चेहरे की झेंप को मिटाते हुए कहाः अरे क्या यार में तो परीक्षा ले रहा था कि दोस्त कुछ पेसे बाकी रख सकता है भी कि नहीं ।
वाह ……………वाह ……….. ! क्या बात है, उस टाईप के शख्स से और आशा भी क्या कि जा सकती थी । में जानता था कि खिसियानी बिल्ली खंभे को नोच रही है । में चुप रह गया फिर भी ! आखिर क्यों लोग मुझसे उम्मीदें लगा बैठते हैं .. जो कि में पुरी नहीं कर सकता ।
आज तक जीवन में मेनें भी काफी उतार चढ़ाव देखे हैं और जब में आज तक किसी से उधार मांगने नहीं गया तो में किसी को क्यूं एसा करुं । कभी परिस्थिती वश ए॓सा कुछ गिनती की बार हुआ भी है, तो भी पन्द्रह मिनट या आधे घंटे में पैसे वापस लौटाने जाने पर मुझे लोगों ने यही कहा क्या पैसे कहीं भाग कर जा रहे थे क्या ! पर नहीं लोग कैसे भी हों कुछ भी करे पर में अपने हिस्से की ईमानदारी रखता हूं। पता नही लोग रुपये पैसे के मामले में इतने कमीनेपन पर कैसे उतर जाते है ।
अनजान
sandeep // Aug 12, 2010 at 4:01 am
woderful story and give us good gudi
naveen kumar // Sep 11, 2010 at 8:16 am
nice story
naveen kumar
Familia // Dec 8, 2015 at 3:00 pm
What a plsuraee to meet someone who thinks so clearly.