आज मेनें प्रतिवर्ष की ही भाति कांकरोली में आयोजित होने वाली गणपति विसर्जन की सवारी को देखा | सवारी में शहर के हर तरफ के एरिया के गणपति एक बडी रेलीनुमा सवारी में इकट्ठे ले जाये जाते हैं और अतं में जल में विसर्जन किये जाते हैं | मुंबई में लोकमान्य तिलक नें अपने प्रयास शुरु किये और इसे फिर गणपति उत्सव हर साल जोशोखरोश से मनाया जाने लगा | और मुंबई की तर्ज पर छोटे शहरों में भी अब ये सारे खेल चालू हो चुकें हैं, क्या कोई मुझे बता सकता हैं कि बीस साल पहले यहां कहां गणपति और गरबा नृत्य के आयोजन होते थे |
सवारी में आम आदमीयों व महिलाओं कें चेहरे पर बडे ही आश्चर्य और डर के मिश्रित भाव आते मुझे महसूस हुए | सवारी में सेंकडों गणपति भक्त गुलाल से सराबोर थे और नाच गा रहे थे | गणपति की जय जयकार के नारे लगाये जा रहे थे पर कई लडकों के हाथों में नंगी तलवारे भी थी और वे ना जाने क्या दिखाना चाहते हैं ये समझ में नहीं आता | आगे पुलिस व ट्रेफिक वाले जवान भी चल रहे हैं पर शायद वे ये सभी चीजों से बेखबर हैं | नंगी तलवारों का यहां भक्ति के माहौल में क्या प्रयोग पर नहीं, आखाडा प्रदर्शन के नाम पर लगता है हमारे भारत में सब कुछ जायज हैं |
अजीब हालत है हमारे शहर की मोटरसाईकिल ले कर चलो तो ट्रेफिक के जवान हेलमेट और लाइसेंस मांगते हैं पर किसी प्रदर्शन के दौरान खुलेआम हथियारों के प्रदर्शन की छूट, क्या इन हथियारों के मालिक अपने साथ जेब में लाइसेंस लिये घुमते भी हैं या नहीं, कानून कहता है कि छः इंच से बडे फल वाले कोई भी नुकीले या धारदार हथियार का सरेराह प्रदर्शन गलत हैं | भगवान गणपति गणेश के प्रति श्रद्धा का भाव होना एक अलग बात है और इस सवारी के दौरान अपनी शक्ति प्रदर्शन करना |
एक अलग बात हैं…………….पता नहीं कुछ संघठन क्या दिखाना चाहते हैं जनता को | फिर पीछे मेनें देखा की टेम्पों में कानफोडू आवाज में फिल्मी गानों के डी.जै. का बजना और उस पर ताकत, जवानी के उन्माद में नाचते युवक पता नहीं ये क्या हो रहा हैं, गणेश भगवान की सवारी में लावारिस के अपनी तो जैसे तेसे कट जायेगी और डी.जै. पे नाच मारी बीदंणी | क्या ये गानों का बजना वो भी ए॓से अवसर पर, वाकई में शोभा देते हैं ? मेरी समझ से तो ये सब बाहर हैं |
ये गणपति की सवारी भी क्या साधारण ढ़ंग से नहीं निकाली जा सकती है जिसमें ये सब हो, जेसे कीः
- कुछ सुमधुर आवाज में भजन गाते हुए भजनमंडली के लोग
- अच्छी साफ सुथरी धुनें बजाते हुए बेन्ड
- कोई बुजुर्ग पंडित सभी को प्रसाद देते हुए चले
- समाज के कुछ सभ्य लोग साथ चले और जयघोष करें जो शहर के समाज में अपनी एक अच्छी छवि रखते हैं
- पुष्पवर्षा करते शहरी घरेलू लोग
- मंगलगीत गाती हुई महिलाएं
अगर कुछ सालों में ए॓सा करने में अगर लोग कामयाब होते हें तो आम जनता के बीच एक अच्छा भक्तिपुर्णता का संदेश जरुर जायेगा |
अब तक कोई भी टिप्पणी नहीं ↓