राजसमन्द झील जिसका की जलस्तर दिन पर दिन कम होता जा रहा है ! इस व्यथा को शब्दो में पिरोया है यहां के ही एक शख्स नें ! राजसमंद के एक बहुत ही ख्यात युवा कवि सुनिल जी “सुनिल” नें अपनी बहुत ही उम्दा रचना भेजी है ! जो इस प्रकार है !
झील भरवा री प्रार्थना:
नाथा रा नाथ द्वारकानाथ ने किदी एक अरज,
प्रभू सुणजो म्हारी भक्ती रो करज !नाथ थारा वेता, यो कई होवे है,
क्युं शान शौकत और वैभवता, इण धरा सूं खोवे है !क्युं सूख ग्यो थारा आंख रो पाणी,
और वता कद लोटेला नो चोकी की जवानी !तु दण रात सोना रा हिण्डोला मे झुल रह्यो है,
और सुख्यो सुख्यो सो राजसमन्द डसुका भर भर रो रह्यो है !अठे हंस थूक निगले है
चिथडो चिथडो हिवडो पिघले है !कागला रे भोजा पे भोज मडी है
और गण्डकडा रे घी री बाट्या घडी !अतराक में सुणी म्हारी नाथ
माथा पर धर्यो हाथ !बोल्या भायाः यो सब करमा रो खेल है
भाटा में उल्ज्या स्वारथ रो खेल है !आडावल चीर हिवडो
थें हीरा काड, खल कामी हंस रिया !जमना मान गोमती रा अमरत में
जाणे सैकडों नाग डस रिया !काट काट वन खन्ड धरा रो
सब श्रंगार उजाडे है !अबे रोई रिया हो
जद कालो काल दहाडे है !म्हारा चरणा में हंसती रमती
माछलिया रा मौत री आउच !और आक्खा पाल पर बिखरोडिया
दारू रा पाउच !अरे थें भूल चुक्या हो
आन बान शान री जोत !मेवाडी माटी ने
राणा राजसिंह री परिपाटी नें !पण घबरा मत अभी भी कई नी वगड्यो है
क्युं की आज भी असा लोग है !जो हंसता हंसता खेल जावे आग में
माथो कट जावे पर जुकवा नी दे पाग नें !पण जण दन सांचो मनख सांचि आस सूं
सत्ता में आएगा !वण दन इ समंदर में
पाछा हिलोडा आएगा !
साभारः कवि सुनिल जी “सुनिल”
http://kavisunilvyas.blogspot.com
kishan gadri emdi // Jun 12, 2010 at 5:48 am
rajsmand jhil ko barne ke liye jhil bharo andolan
chalana cahyaya
Bhagwati lal prajapat // Feb 7, 2013 at 1:21 pm
Rinhhed ganv ka itihas bataye.