राजस्थान के एक बहुत ही होनहार कवि थे कन्हैयालाल सेठिया | वे राजस्थानी में कवितायें, गीत आदि लिखा करते थे, बडा ही उम्दा लेखन था उनका |वे अपनी रचनाओं में शब्दों की ए॓सी जादूगरी जोडते थे कि बस….. आज के जमाने में भी राजस्थान की महिमा का बखान करते उनके गीत व कवितायें बहुत ही शौक से पढ़ी व सुनी जाती हैं | उनकी एक बहुत ही जोरदार रचना है वह है पीथल और पाथल |
ये कविता इंगित करती है हमें तब जब महाराणा प्रताप का जीवन काल बहत ही कठिनाई के दौर से गुजर रहा था, वे मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहाते थे और परिणामस्वरूप उन्हें जंगल जंगल में छुप छुप कर गुजर बसर करनी पड रही थी | राणा प्रताप मेवाड को मुगलों से वापस छीनना चाहते थे और उसी कारण छापामार युद्ध कर रहे थे और मुगलों को करारा नुकसान दे रहे थे | उन्हीं कठीनाई के दिनों में एक दिन जब राणा प्रताप नें अपने पुत्र अमरसिंह को घास से बनी रोटी खाने के लिये दी और वह भी एक जंगली बिल्ला ले कर भाग गया, अपने पु्त्र को भूख से रोता देख राणा का मन द्रवित हो उठा और उन्होने आत्मसमर्पण हेतू अकबर को एक पत्र भेजा |
अकबर को खुद यकीन नहीं हुआ की प्रताप इस तरह अधीनता स्वीकार करेगें पर यही जांचने के लिये अकबर नें अपने कवि पीथल को एक पत्र भेजने को कहा | पीथल राणा प्रताप को मन ही मन बहुत सम्मान करता था | पीथल ने कुछ जोश से भरपूर पक्तियां लिखी और महाराणा प्रताप को फिर कभी न झुकने के प्रण को याद दिलाया | और महाराणा प्रताप फिर से मुगलों से लोहा लेने के लिये तत्पर तैयार खडे हुये | और पीथल राणा से जागे स्वाभिमान को देख बहुत हर्षाया | यही सब कुछ है इस ए॓तिहासिक कविता पीथल और पाथल में |
पीथल और पाथलः कन्हैयालाल सेठिया
अरे घास री रोटी ही, जद बन बिलावडो ले भाग्यो |
नान्हों सो अमरयो चीख पड्यो, राणा रो सोयो दुःख जाग्यो ||
हूं लड्यो घणो, हूं सह्यो घणो, मेवाडी मान बचावण नै |
में पाछ नहीं राखी रण में, बैरया रो खून बहावण नै ||
जब याद करूं हल्दीघाटी, नैणा में रगत उतर आवै |
सुख दुख रो साथी चेतकडो, सूती सी हूक जगा जावै ||
पण आज बिलखतो देखूं हूं, जद राजकंवर नै रोटी नै |
तो क्षात्र धर्म नें भूलूं हूं, भूलूं हिन्वाणी चोटौ नै ||
आ सोच हुई दो टूक तडक, राणा री भीम बजर छाती |
आंख्यां में आंसू भर बोल्यो, हूं लिख्स्यूं अकबर नै पाती ||
राणा रो कागद बांच हुयो, अकबर रो सपणो सो सांचो |
पण नैण करया बिसवास नहीं,जद बांच बांच नै फिर बांच्यो ||
बस दूत इसारो पा भाज्यो, पीथल ने तुरत बुलावण नै |
किरणा रो पीथल आ पूग्यो, अकबर रो भरम मिटावण नै ||
म्हे बांध लिये है पीथल ! सुण पिजंरा में जंगली सेर पकड |
यो देख हाथ रो कागद है, तू देका फिरसी कियां अकड ||
हूं आज पातस्या धरती रो, मेवाडी पाग पगां में है |
अब बता मनै किण रजवट नै, रजुॡती खूण रगां में है ||
जद पीथल कागद ले देखी, राणा री सागी सैनांणी |
नीचै सूं धरती खिसक गयी, आंख्यों में भर आयो पाणी ||
पण फेर कही तत्काल संभल, आ बात सफा ही झूठी हैं |
राणा री पाग सदा उंची, राणा री आन अटूटी है ||
ज्यो हुकुम होय तो लिख पूछूं, राणा नै कागद रै खातर |
लै पूछ भला ही पीथल तू ! आ बात सही बोल्यो अकबर ||
म्हें आज सूणी है नाहरियो, स्याला रै सागै सोवैलो |
म्हें आज सूणी है सूरजडो, बादल री आंटा खोवैलो ||
पीथल रा आखर पढ़ता ही, राणा री आंख्या लाल हुई |
धिक्कार मनैं में कायर हूं, नाहर री एक दकाल हुई ||
हूं भूखं मरुं हूं प्यास मरूं, मेवाड धरा आजाद रहैं |
हूं घोर उजाडा में भटकूं, पण मन में मां री याद रह्वै ||
पीथल के खिमता बादल री, जो रोकै सूर उगाली नै |
सिहां री हाथल सह लैवे, वा कूंख मिली कद स्याली नै ||
जद राणा रो संदेस गयो, पीथल री छाती दूणी ही |
हिंदवाणो सूरज चमके हो, अकबर री दुनिया सुनी ही ||
Photo Source: http://www.flickr.com/photos/vighanesh/5856243526/
madan chhajer // Aug 6, 2011 at 7:29 am
yery good kavita pathal……. so good so nice thank madan chhajer editor hindustan border dailly jodhpur $ barmer
Hanuman Neemla // Dec 4, 2015 at 12:50 pm
Very hertly poem
जोगारााम सारण // Nov 6, 2016 at 10:17 am
राणा का जीवन धन्य हैं
Rajesh Bhatnagar // Nov 24, 2016 at 10:37 pm
बचपन में ये कविता पढ़ी थी जिसने प्रताप के जीवन से बहुत प्रेरित किया था। कविता आधी अधूरी याद थी। इसे अनेक दिनों से ढूंढ रहा था। आपका धन्यवाद जो आपने मुझे इस कविता से मिला दिया। पढ़कर बहुत रोमांचित हुआ।
JASWANT KUMAWAT // Jan 12, 2017 at 9:32 am
Best song lyrics of maharana pratap
JASWANT KUMAWAT // Jan 12, 2017 at 9:33 am
Photos of maharana pratap
Ek Mewari // Jan 25, 2017 at 12:41 pm
Jai Mewar
Jai Ekling Ji
देवेन्द्र पुष्करणा // Feb 2, 2017 at 1:53 pm
कविता बहुत ही सुंदर हे शब्दों का चयन उच्च कोटि का है पर यह केवल कपोल कल्पित है हकीकत में ऐसा कुछ हुवा ही नही था कवी ने कविता में कहा है की हल्दी घाटी युद्ध के बाद राणा प्रताप की ईएसआई दुर्दशा हो गई के वे वन में भटकने लगे और घास की रोटी खाते वक्त अमर सिंह छोटा था तो जंगली बिला रोटी छीन के ले गया और वो रोने लगा , ये कैसे सम्भव है अमर सिंह का जन्म 1569 में हुवा था और हल्दीघाटी युद्ध 1576 में इस हिसाब से अमर सिंह युद्ध के समय 17 वर्ष के थे थे तो छोटे कहा से हुवे राणा ने कोई पत्र नही लिखा था अक़बर को यह एक काल्पनिक कविता है हल्दीघाटी युद्ध में अमर सिंह को रनिवास की सुरक्षा की जिमेदारी थी और कवि के अनुसार एक 17 वर्षीय युवा वीर रोटी के लिये रोया था ……
देवेन्द्र पुष्करणा // Mar 4, 2017 at 6:50 am
गलत प्रचारित की जा रही हे कविता ऐसा कुछ भी नही हुवा था
PUROHIT // Apr 6, 2017 at 6:22 pm
kavita aadhi adhuri hai
Rinku Giri // Aug 10, 2017 at 6:50 pm
devendra bhai ye bat haldighati yudhdh se pahle ki h|or ha haldighati ke yudhdh me rana g ne us mugal akbar ko buri tarah parajit kiya tha|jyada jankari ke liye rajasthan rajya ki pathy pustak paden|
कुमार दिनेश कुमावत // Sep 3, 2017 at 2:28 pm
17 नही 7 वर्ष का था अमर सिंह 69-76 –7 वर्ष जबर्दस्ती टिप्पणी कर रहे हो ।अपने थोथे ज्ञान को अपने पास रखो किसी के इतिहास पे मत थोपो
हेतराम अध्यापक // Sep 10, 2017 at 1:53 am
सच्चे देशप्रेम की कविताएं आज पुस्तकों से गायब है
om kodecha // Sep 15, 2017 at 3:29 am
bhot hi khub likha h kneyalal ji ne heart ko chu gya
Sunil Dutt vashist // Sep 27, 2017 at 6:08 am
Dosto yeah Mahatav puran nhi k kon jeeta balki ye h ki har kisne Mani
S d vaishnav // Oct 1, 2017 at 5:35 am
Mahrana prarap hindusthan ke sache Kshatriya or matrbhumi ke rakhwale the unhe naman karate huye seena grave se phul jata h pithal ko naman vishav ka Hindu aap par grav karega jai jai jai pratap ………,,,, S D Vaishnav
Kiran Udiwal // Oct 21, 2017 at 12:57 pm
Shriman ji ye kavita Rajasthan ke pathyapustak se li gayi h aur hum sab es kavita ko aaj bhi bahut josh v aadar ke saath yaad karte h. Aur haan Amar Singh ki aayu aapki ganana ke mutaabik bhi 07 years ki hi hoti h jo ki nihayat hi kam thi so bilav roti chhin sakta tha. Tathyo ke bina jhootha thahrana thik nahi h
मुरारीलाल शर्मा // May 18, 2018 at 3:18 am
मेवाड़ की धरा धन्य है जहाँ ऐसे वीर सपूत पीड़ा हुए,धन्य है यह के लोग,महाराणा प्रताप की जय हो
करण ढाका // Jul 24, 2018 at 10:43 pm
बहुत ऊंचे आदर्श के साथ राष्ट्रीय अस्मिता और प्रेम से परिपूर्ण कविता राजस्थानी के मूर्धन्य साहित्यकार द्वारा रचित।
एक और बात साहित्य को कभी इतिहास ग्रंथ के रूप में न देखा परखा जाना चाहिए भले ही उसमें कल्पना हो क्योंकि उसका प्रभाव प्रत्येक काल में होगा।
धर्मराज गुर्जर भाटिया // Sep 27, 2018 at 8:22 am
मेवाड के विर ,प्रतापी,साहसी,महाराणा प्रताप की कविता पडकर में बहुत प्रश्न्न महसुस कर रहा हूं।धन्य हो आपकी माँ को जिसने ऐसे विर योद्धा को जन्म दिया ।
Kailash // Sep 30, 2018 at 9:24 am
Itihas me na hi chher chhar achhi h na hi tippani. Har ke bad Raja ki manovyetha koi nahin janta. Kavi ne Rajasthan ke viron ki praise ki h Buraee nahin.
Rahul verma // Feb 19, 2019 at 9:02 am
Muje kavita ko padh kar bada garva mahsus huwa h bahut badiya
m r. gujar // Oct 18, 2019 at 4:02 am
mata pana dhai jesi nari bharat me sadev peda nhi hoti he, dhany ma pana dhai.
GOPAL Jam // Jan 14, 2020 at 5:35 am
Bahut bahut achhi kavita thanks sir ji
Sanyam Jain // Mar 11, 2020 at 1:56 am
Maharana Amar Singh ji ka janm 1559 me hua tha according to Mmcf website or haldighati 1576 me .iss prakar 17 saal ki aayu hui
Chatur Bhuj Jilowa // Jun 21, 2020 at 12:19 pm
Pithal evm pathal Kavita Vidyarthiyo ke course me honi chahiye. Shorya , tyag ,balidan , sanskritik dharohar ke matters course me hone ke liye government ko dekhana chahiye.
Thanks Sir 🙏🙏🙏
Chatur Bhuj Jilowa Ex DEO
खेमराज मीना // Jan 22, 2021 at 7:32 am
खेमराज मीना -:भाईयो बहुत अच्छी कविता है। महाराणा प्रताप वीर योद्धा थे कवि कन्हैया लाल सेठिया जी ने बहुत खूब लिखा राणा के बारे मे।