श्याम नारायण पान्डेय एक बहुत ही विशेष कवि हैं जिन्होनें हल्दीघाटी युद्ध जैसे विषय पर बहुत महान रचना की है, आप ये जरुर पढ़ें और अन्य लोगों को भी सुनायें, केवल पठन मात्र से ही रग रग में जोश का सा संचार आप महसूस कर सकते हैं |
हल्दीघाटीः युद्ध | श्याम नारायण पान्डेयः
निर्बल बकरों से बाघ लडे
भिड गये सिंह मृग छौनो से
घोडे गिर पडे, गिरे हाथी
पैदल बिछ गये बिछौनो से
हाथी से हाथी जूझ पडे
भिड गये सवार सवारों से
घोडे पर घोडे टूट पडे
तलवार लडी तलवारों से
हय रुण्ड गिरे, गज मुण्ड गिरे
कट कट अवनि पर शुण्ड गिरे
लडते लडते अरि झुण्ड गिरे
भू पर हय विकल वितुण्ड गिरे
मेवाड केसरी देख रहा
केवल रण का न तमाशा था
वह दौड दौड करता था रण
वह मान रक्त का प्यासा था
चढ़ कर चेतक पर घूम घूम
करता सेना रखवाली था
ले महा मृत्यु को साथ साथ
मानो साक्षात कपाली था
रण बीच चौकडी भर भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोडे से
पड गया हवा को पाला था
गिरता ना कभी चेतक तन पर | सेना नायक राणा के भी
राणा प्रताप का कोडा था | रण देख देख कर चाह भरे
वह दौड रहा अरि मस्तक पर | मेवाड सिपाही लडते थे
या आसमान पर घोडा था | दूने तिगुने उत्साह भरे
जो तनिक हवा से बाग हिली | क्षण भर में गिरते रूण्डों से
लेकर सवार उड जाता था | मदमस्त गजों के झुण्डों से
राणा की पुतली फिरी नहीं | घोडों के विकल वितुण्डों से
तब तक चेतक मुड जाता था | पट गई भुमि नर मुण्डों से
कौशल दिखलाया चालों में | ए॓सा रण राणा करता था
उड गया भयानक भालों में | पर उसको था संतोष नहीं
निर्भिक गया वह ढ़ालों में | क्षण क्षण आगे बढ़ता था वह
सरपट दौडा करवालों में | पर कम होता था रोष नहीं
है यहीं रहा, अब यहां नहीं | कहता था लडता मान कहां
वह वहीं रहा, अब वहां नहीं | मैं कर लुं रक्तस्नान कहां
थी जगह ना कोई जहां नहीं | जिस पर तय विजय हमारी है
किस अरि मस्तक पर कहां नहीं | वह मुगलों का अभिमान कहां
बढ़ते नद सा वह लहर गया | भाला कहता था मान कहां
वह गया गया, फिर ठहर गया | घोडा कहता था मान कहां
विकराल वज्र मय बादल सा | राणा की लोहित आंखों से
अरि की सेना पर घहर गया | रव निकल रहा था मान कहां
चढ़ चेतक पर तलवार उठा | लडता अकबर सुल्तान कहां
रखता था भूतल पानी को | वह कुल कलंक है मान कहा
राणा प्रताप सिर काट काट | राणा कहता था बार बार
करता था सफल जवानी को | मैं करूं शत्रु बलिदान कहां
कल कल बहती थी रण गंगा | तब तक प्रताप ने देख लिया
अरिदल को डूब नहाने को | लड रहा मान था हाथी पर
तलवार वीर की नाव बनी | अकबर का चंचल साभिमान
चटपट उस पार लगाने को | उडता निशान था हाथी पर
वैरी दल को ललकार गिरी | फिर रक्त देह का उबल उठा
वह नागन सी फुफकार गिरी | जल उठा क्रोध की ज्वाला से
था शौर मौत से बचो बचो | घोडा ले कहा बढ़ो आगे
तलवार गिरी, तलवार गिरी | बढ़ चलो कहा निज भाला से
पैदल से हय दल, गज दल में | हय नस नस में बिजली दौडी
छिप छप करती वह विकल गई | राणा का घोडा लहर उठा
क्षण कहां गई कुछ पता न फिर | शत शत बिजली की आग लिये
देखो चम चम वह निकल गई | वह प्रलय मेघ सा घहर उठा
क्षण इधर गई, क्षण उधर गई | रंचक राणा ने देर न की
क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई | घोडा बढ़ आया हाथी पर
था प्रलय चमकती जिधर गई | वैरी दल का सिर काट काट
क्षण शोर हो गया किधर गई | राणा बढ़ आया हाथी पर
क्या अजब विषैली नागिन थी | वह महा प्रतापी घोडा उड
जिसके डसने में लहर नहीं | जंगी हाथी को हबक उठा
उतरी तन से मिट गये वीर | भीषण विप्लव का दृश्य देख
फैला शरीर में जहर नहीं | भय से अकबर दल दबक उठा
थी छुरी कहीं, तलवार कहीं | क्षण भर छल बल कर खडा अडा
वह बरछी असि करधार कहीं | दो पैरों पर हो गया खडा
वह आग कहीं, अंगार कहीं | फिर अपने दोनो पैरों को
बिजली थी कहीं, कटार कहीं | हाथी मस्तक पर दिया अडा
लहराती थी सिर काट काट |
बल खाती थी भू पाट पाट |
बिखराती अवयव बाट बाट |
तनती थी लोहू चाट चाट |
Sharvan Sharma // Jul 23, 2013 at 12:16 pm
I salute to maharaja partap
aditya singh // Dec 28, 2013 at 4:02 am
the greatest man in history Maharana Pratap
सचिन // Mar 31, 2014 at 2:22 am
क्या बात है