यह बात है काफी पुराने दिनों की, हम दोस्त लोग अक्सर शाम को अपने अपने देनिक कार्यों से निवृत हो कर थके हारे आते और शहर के पास ही स्थित राजसमन्द की पाल पर घुमने जाया करते थे। शाम को चहल कदमी भी हो जाती थी व मित्रगणों के साथ थोडी हंसी ठिठोली भी, तो रोजाना वहां आने जाने का एक नियम सा बन गया था ।
तो उन दिनों मुझ पर भी पता नहीं एक्युप्रेशर का एक भूत सा चढ़ा हुआ था (अक्सर एसा होता है सबके साथ कि हमेशा कुछ नया करने को तैयार रहते हैं व अगर वह एक लिमिट से ज्यादा हो जाए तो भारी बोर हो जाते हैं, उसके बाद फिर से कुछ नया सोचते हैं, कि अब क्या नया किया जाए जिससे दिल को शांती व सुकुन चैन मिले) वेसे पिताजी भी हमारे एक्युप्रेशर व पिरामिड चिकित्सा पद्धतियों के अच्छे जानकार है, हर बार शहर में लगने वाले खादी मेले व इस तरह के आयोजनों से अक्सर कुछ ना कुछ एक्युप्रेशर हेतु काम आने वाले आईटम उठा कर लाते ही रहते हैं, अब तो अलमारी का एक कोना उन सब साजो सामान से ही भर गया है । तो लम्बे समय से घर में तो ये सब वस्तुओं से नोलेज तो जेसे विरासत में मिल ही रहा था । हम भी जनाब एक्युप्रेशर पद्धतियों के फेन हो गए (वेसे फेन तो अभी भी हैं पर थोडे छोटे वाले)
चाहें किताबें या अखबार हो या फिर इन्टरनेट की विभीन्न साईट्स, में तो हमेशा उन दिनों एक्युप्रेशर के बारे में ही पढ़नें व सीखने मे व्यस्त रहा करता था। काफी सारे दोस्तों को भी अक्सर समझाता था की एक्युप्रेशर बडी अच्छी चीज है, ये हे, वो है इसके ये फायदे है एसा है, वैसा है ।
एक बार की बात है हम अपने मित्रगणों के साथ रोजाना की तरह टहलने गए। शाम का समय था व चुंकि हल्का हल्का अंधेरा सा होने लगा था तो सोचा की अब घर चला जाए तो हम लोग बाते करते हुए वापस आ रहे थे। वहां पाल पर जो रास्ता है, वह एकदम समतल नहीं है व अलग अलग पथ्थरों से बना हुआ है कुल मिला कर अगर नंगे पैर पैदल चला जाए तो एक्युप्रेशर के हिसाब से काफी फायदेमंद है । तो उन दिनों क्योंकि मुझ पर एक्युप्रेशर का तगडा भूत चढ़ा हुआ था ही, मेनें अपने जुते खोल कर हाथ में पकड रखे थे व नंगे पेर हम लोग बातों में मशगूल चले जा रहे थे (बाते भी चल रही थी एक्युप्रेशर के फायदों की ही, वेसे में सबको समझा रहा था, कि इसके ये फायदे हैं, वगेरह )। और मुझे रास्ते की तरफ देखने का समय ही नहीं मिल पा रहा था ।
हुआ क्या की हम जहां चल रहे थे वहीं पर रास्ते में एक डेढ़ फीट लम्बे दो सांप आपस में लिपट रहे थे व रेंग रहे थे, हल्के अंधेरे के कारण किसी का ध्यान उस ओर नहीं गया । हम दोस्त लोग परेड के जवानों की कदम ताल मिलाते हुए जाए जा रहे थे कि अचानक बातें करते हुए ही एक कदम रखते समय मेरा ध्यान सहसा उन दो सांपों पर गया जो आपस में लिपट रहे थे व खेल रहे थे । में चाहता था कि सांप की पुंछ पर पेर नही पड जाए पर शरीर तो जेसे कदम बढ़ा चुका था, पुरे बदन में एक सनसनी सी दौड गई व कदम लडखडा गए । भगवान नें बचा लिया बाकी उस दिन सांप के उपर पेर पड जाता तो सांप काटता ही था, व सांप अगर काटता तो हम भी शायद जहर की वजह से तो नहीं पर डर की वजह से अल्लाह को प्यारे हो गए होते । (वेसे हमें ये पता था कि ज्यादातर सांप जहरीले नहीं होते हैं, कुछ ही जहरीले होते हैं)
सब मित्र लोगों को पता पडा व उन्होनें ईस घटना पर खुब मजाक उडाया, (हालांकी में खुद भी उनके साथ हंसी में शामिल था पर कर भी तो क्या सकता था) दोस्तों ने कहा कि बडा आया एक्युप्रेशर के फायदे सिखाने वाला, अभी सांप के उपर पेर पड जाता तो निकल जाता सब एक्युप्रेशर, वेक्युप्रेशर । अब उस दिन के बाद से हमने तो जेसे सौगधं खा रखी है, कि चाहे एक्युप्रेशर के फायदे हमें मिले या नहीं मिले, पर नंगे पेर एसी वेसी जगह पर अब पैदल नहीं चलेंगे, और तब से ही हमारा एक्युप्रेशर का भूत भी उतर गया है ।
paramjitbali // May 17, 2007 at 3:12 am
अच्छा लिखा है । कुछ भी करें लेकिन सावधानी तो रखनी ही चाहिए।
हरिराम // May 17, 2007 at 8:13 am
एक्यूप्रेशर में पिरामिड जैसे नुकीले बिन्दुओं वाले पट्टे पर खड़े होना, कूदना, दानेदार चप्पल पहनना बेबकूफी है। क्योंकि जिस नस के दबने से शरीर को फायदा होता है वह भी दबती है तथा जिस नस या नाड़ी के दबने से आपको नुकसान हो सकता है वह भी दबती है।
जिस प्रकार हनुमान जी संजीवन बूटी को पहचान नहीं पाए, और पूरा पहाड़ ही उखाड़ कर ले आए। यह ऐसी ही अंधेरे में तीर चलानेवाली चिकित्सा पद्धति है।
क्योंकि शरीर में 72000 तन्त्रिकाएँ / नाड़ियाँ होती हैं, कुछ तो बाल से भी पतली होती हैं। सबका सही ज्ञान रखनेवाला योग्य चिकित्सक ही सही दबाव देकर चिकित्सा कर पाता है। जिसे न्यूरो प्रेसर कहा जाता है। सिर्फ एक मिनट के सही दबाव से जन्म से ही विकलांग, पोलियो से हाथ पैर टेढ़े हुए अंग, शरीर के किसी भी अंग में वर्षों से लगा हुआ दर्द तक ठीक हो जाता है।
अतः नाड़ी तन्त्रिका ज्ञान वाले सुयोग्य आयुर्वेदाचार्य से ही दबाव चिकित्सा करवानी चाहिए। यह बच्चों का खेल नहीं।
B P GAUR // Jul 30, 2016 at 6:27 am
NEEM HAKEEM KHATRE JAN