राजस्थान में वेसे तो गणगौर का त्योहार खास महत्व रखता है ही पर, हमारे राजसमन्द जिले के कांकरोली में भी इस गणगौर के त्योहार पर लोगों का हर्षोल्लास चरम पर दिखाई पडता है । पिछले कई सालों से यहां गणगौर धूमधाम से मनाई जाती है, इस सब की शुरुआत हुई थी काफी सालों पहले शहर के ही कुछ उत्साही नवयुवकों के एक समूह “जनतामंच” से । बहुत पहले ये सब रस्म को पारम्परिक तौर पर किया जाता था । पर बाद में धीरे धीरे युवकों के उत्साह से लोगों का शौक परवान चढ़ा और फिर एक समय एसा भी आया की नगरपालिका और प्रशासन भी इस गणगौर की शोभायत्रा व मेले में उत्साह दिखाने लगी ।
हर साल गणगौर की सवारी निकाली जाती है जो लगभर चार पांच किलोमीटर तक लम्बी होती है व सब कुछ कार्यक्रम भी काफी भव्यता के साथ होते हैं । शोभायात्रा में “भंवर म्हाने पूजन द्य्यो गणगौर” का यह गीत तो जैसे चार चांद लगा देता है । काफी सारे तामझाम और भव्यता के साथ सुसज्जित हाथी, घोडे, उंट, झांकिया, कच्छी घोडी नर्तक, बेंड बाजे, भगवान द्वारिकाधीश की छवि और मंदिर के छडीदार, मशाल लिए हुए घुडसवार, सेवरा ले कर जाती स्कूली लडकियां आदि इस गणगौर की सवारी या शोभायात्रा में प्रदर्शन करते हैं । शोभायात्रा के पीछे की तरफ नगरपालिका की बडी बडी हस्तियां जेसे पार्षदगण, नेता एवं प्रभुत्वशाली लोग चलते हैं ।
यह शोभायात्रा भगवान द्वारिकाधीश के मंदिर से शुरु होती हुई मुख्य मार्गों से हो कर स्कूल मैदान पर पहुंचती है जो कि मेला स्थल होता है । वहां भगवान द्वारिकाधीश की छवि और शोभायात्रा का स्वागत वगैरह किया जाता है ततपश्चहै ततपश्चात सांस्कृतिक कायर्क्रम प्रस्तुत किए जाते है । मुख्यतः गणगोर का यह त्योहार यहां तीन दिन मनाया जाता है । हरी गणगौर, गुलाबी गणगौर और चुन्दडी गणगौर । तीनों दिन मेला कमेटी द्वारा अलग अलग प्रोग्राम तय किए जाते है और सम्पन्न कराए जाते हैं । आखिरी या अन्तिम दिन गणगौर की सवारी व मेला दोनों ही अपने पूरे शबाब पर होते है । आतिशबाजी, भव्य शोभायात्रा, कवि सम्मेलन और सांस्कृतिक कायर्क्रमों आदि से यह पावन त्योहार और भी ज्यादा अच्छा बन पडता है ।
aarti sood // Jun 16, 2011 at 12:06 pm
v.v.v.nice.
satya prakash jangir // Sep 27, 2016 at 6:19 am
very pleased to know about our traditional festival. personally I appreciate ur effort.