पिछले सात दिन में दो तीन बार मेनें NDTV पर आने वाला एक धारावाहिक जस्सुबेन जयन्तिलाल जोशी देखा, उसमें एक पात्र है । जसुबेन का चश्मेवाला बडा लडका जो पेशे से टीचर है और कविताएं लिखना उसका शौक है । अपने आप को प्रसिद्धी पाते हर कोई देखना चाहता है और वह भी एसा ही सोचता है । एक दिन अखबार पढ़ते हुए वह अपना नाम देखता है, अखबार में लिखा होता है कि उसने बहुत अच्छा काम किया है और किसी को अस्पताल पहुंचाने में मदद की । वास्तविकता में उस शख्स नें जिन्दगी में सिवाय दुसरों को लेक्चर देने के कोई काम नहीं किया होता है । थोडी ही देर में घर वालों को पता चल जाता है वह डींगे हांक रहा था । फिर आती है जस्सुबेन एक टिपीकल गुजराती परिवार की मुखिया महिला के लीड रोल में और अपने बडे बच्चे को बहुत खरीखोटी सुनाती है उस दिन । बाद में बच्चे व मां को यानी जसुबेन को फील होता है कि एसा नहीं होना चाहिए था । फिर जसुबेन का लडका इस बात से सीख लेता है, कुछ कर के दिखाएगा ।
जाने क्युं एसा लगा की ये सब मेरी ही जिन्दगी का आइना है । अपने राम भी एसे हीं है , कुछ काम धाम कुछ करना है नहीं, सुबह सबसे लेट उठना, एक भी काम खुद नहीं करना, सब काम दुसरों के भरोसे । सिर्फ और सिर्फ हुकुम चलाना आता है, कि ये लाओ वो लाओ । सब्जी एसी क्यों बनाई है, ये नहीं वो नहीं, हर बात में ना ना ना । काम है तो सिर्फ एक, कम्प्युटर पर अपने भेजा को खपाना और एसे एसे काम करना की जिनका कोई तुक या भविष्य ही नहीं है जेसे हिन्दी ब्लागिंग । एकदम निठल्लागिरी बस । सुबह की शाम और शाम की सुबह करना ही जैसे जिन्दगी का मकसद हो ।
एक चुटकला है , किसी ने पुछाः व्हाट आर यु डुईंग ?
जवाब आयाः आई एम, ……………..कुछ रुकते हुए …………………किलींग टाईम ।
लगा कि कैसा इत्तेफाक है, ये किरदार तो एकदम मेरे जैसा ही है । टी.वी. देखते हुए बडा अनोखा सा एक एहसास हुआ, जेसे डांट उसको पडी है पर खुद को संभल जाना होगा । सोचता हुं .. अब हर बात में हां हां ही होनी चाहिए, जीवन को हंसी खुशी से जीने का प्रयास करना चाहिए और कुछ ना कुछ कर के दिखाने की उमंग होनी चाहिए जीनव में । यूं आलस्य से काम नहीं चलने वाला है अब ।
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