फिर से नया साल आ गया है ! सभी लोगो अपने अपने नए टारगेट बनाते हैं, अपने आप से वादा करते हैं कि में इस साल ये करुंगा ये नहीं करुंगा। पर शायद ही उनमें से कुछ लोग अपने प्लान के हिसाब से पुरे साल चल पाते होंगे । इन्सान है ना कुछ भी चीज से जल्दी उब जाता है । मान लो सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में सेर करने जाने का ही निर्णय अगर कोई लेता है तो पहले दिन क्या होता है महाशय उठ जाते हैं, तैयार होते ही सेर पर निकल पडते है, दो चार दिन में ही बाजार से ट्रेक सूट, जुते मोझे और पता नहीं क्या क्या तामझाम घर आ जाते है । पर कुछ दिन बाद ही सुबह का घडी का अलार्म कडवा लगने लगता है लगता है कि आज ना जाएं तो क्या होगा । कल से रेगुरल जाउंगा । पर क्या है कि एक भी दिन छूटा तो सुरक्षा चक्र टुटा । फिर जाना बंद हो जाता है, धीरे धीरे हम यह सोचने लगते है कि क्योंकि स्वस्थ शरीर के लिए पुरी नींद की भी भरपूर आवश्यकता होती है इसलिए पहले नींद पुरी लो, फिर दुसरे सारे काम ।
अमिताभ बच्चन साहब एक फिल्म में डायलोग मारते है कि “कोशिशे कामयाब होती हैं और वादे अक्सर टूट जाया करते हैं“ । कोशिश करते रहने कि यह सोच कब तक अनवरत जारी रहती है । बहुत कुछ करना है पर कब, आपसे, मुझसे कब तक ये सारे वादे निभ पाते हैं, अब बस यह देखना है ।
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