गौरवशाली इतिहास का साक्षी अजेय कुंभलगढ़ दुर्ग :
यहीं पर जन्म हुआ था महाराणा प्रताप का जिन्होने आजीवन संघर्ष किया और मुगलों के साथ लोहा लिया | प्रताप ने पूरे जीवन भर मुगलों के साथ स्वतन्त्रता के लिये संघर्ष किया और युद्ध में छापामार प्रणाली का उपयोग किया | उस जमाने में मुगल साम्राज्य अपने समय का सबसे वृहद और विशाल और ताकतवर साम्राज्य था पर प्रताप नें कभी भी मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं की, वे आजीवन जंगलों में विचरण करते रहे, लडते रहे पर कभी समर्पण नहीं किया |
महाराणा प्रताप नें स्वाभिमान के साथ अपना माथा उंचा रखा, प्रताप के जीवनकाल का अधिकांश समय कु्भंलगढ़ में ही बीता | क्यूं कि यहां उंचे गढ़ पर रहते हुए मुगल फौजों का सामना चित्तौडगढ़ दुर्ग की तुलना में बहुत ही बेहतर तरीके से किया जा सकता था |
चारों तरफ अरावली की पहाडीयों से घिरा होने के कारण यह कु्भलगढ़ का किला अपने समय में बहुत ही दुर्गम स्थल पर था और पहाडों की तलहटी में होने वाली छोटी से छोटी हलचल को भी दूर से ही देखा जा सकता था, और उंचाई पर चौकसी कर रहे विश्वसनीय दूत दूर की गतिविधियों की सुचना अपने महाराणा को पहुंचा सकते थे | महाराणा प्रताप युद्ध कला में बडे निपुण थे और राष्ट्रभक्त तथा स्वतन्त्रता, स्वाधीनताप्रेमी होने के कारण आज भी पूरे भारतवर्ष के लोगों के दिलों में बसते है | उन्हें प्रातः स्मरणीय भी इसलिये ही कहा जाता है | प्रताप जैसे महान महाराजा का प्रातः एक बार स्मरण करना ही मोक्ष प्राप्ति के जैसा है |
कुंभलगढ़ के आसपास पहाडी क्षेत्र होने के कारण यहां काफी आदिवासी भील रहते थे, प्रताप नें ऊन्हे अपना मित्र बनाया | कहा जाता है कि एक एक भील दस दस किलोमीटर की दूरी पर पहाडों की चोटी पर रहते हुए भी पहाड की तलहटी में सेना की हलचल आदि की सूचना तुरंत एक दूसरे को देते थे |
उनके तरीके भी अलग थे जेसे थे ढ़ोल बजाकर या आग जलाकर धु्ंए से खतरे की सूचना पहु्ंचाना | इस तरीके से प्रताप का सारा काम आसान हो जाता था | छोटी मोटी हलचल की सूचना भी प्रताप को शीघ्र मिल जाती थी | इस तरह छापामार प्रणाली से तुरंत या तो मुगलों की सेना की टुकडियों का या तो रसद लूट लिया जाता या उन्हे अचानक आक्रमण से मार डाला जाता | यह एक खास तरह की युद्ध प्रणाली थी जिसे गुरिल्ला युद्ध या छपामार युद्ध प्रणाली कहा जाता है यह महाराणा प्रताप नें खुद अल्प साधनों के साथ जंगल में विकसित की थी |
अकबर प्रताप को हराने के लिये लालायित था और उसकी मुगल फौजें कुंभलगढ़ पर लगातार हमले करती रहती थी | एक बार किले में रसद सामग्री खत्म हो जाने की वजह से प्रताप को अपने सहयोगियों के साथ रणकपुर की तरफ जाना पडा था और थोडे से कुछ समय के लिये मुगलों का इस किले पर कब्जा हो गया था | पर जल्दी ही महाराणा प्रताप नें पुनः अपने लोगों को एकत्र किया और आक्रमण करके इसे वापिस हासिल किया, साथ ही महाराणा प्रताप नें बांसवाडा, डूंगरपुर और अन्य राज्यों के राजाओं को भी मुगलों की अधीनता से मुक्ति दिलवायी | समूचा कुंभलगढ़ दुर्ग साक्षी है मेवाड के शासकों के अनूठे शौर्य का उनके कला प्रेम और देशप्रेम का | यहां कुंभलगढ़ में हमेशा से ही साहित्य व कला को बहुत संरक्षण मिला |