शादियों का सीजन चल रहा हे व हमारे शहर में चारों तरफ इसी तरह की गहमा गहमी है। बारात, बेंड बाजे, रोज रोज किसी ना किसी मिलने वाले के यहां प्रतिभोज में जा कर के खाना, व फिर लिफाफे टिकाना, एक अदद फोटो खिंचवाना व वापस घर आकर के सो जाना यही रुटिन हो गया है ।
हमारे यहां बडा अजीब सा सिस्टम है, जेसे कि मान लो जेसे “मिस्टर अशोक” व मिस्टर गिरिश के अच्छी जान पहचान है, पडोस में ही रहते है , अब मिस्टर अशोक की शादी है व उसने “मिस्टर गिरिश जी सपरिवार” के नाम का कार्ड दिया तब तो ठीक है और यदि सिर्फ “मिस्टर गिरिश” नाम से ही कार्ड दिया तो गिरीश के के घर कोई ना कोई महिला यह कह पडती हें – “कि बडा कंजुस हे, ये हे वो हे, और उसके तो मेन रिसेप्शन के दिन खाना कम ना पड जाए तो कहना। ”
चाहे आपने कभी अपने घर की शादी में उनको अकेले ही निमन्त्रीत किया था पर जब उनके कुछ काम पडता है तो लोग बडी आशाएँ रखते है। अरे वाह भई, सामने वाले की मर्जी आपको बुलाए या ना बुलाए। कहने का मतलब “अपना खून, खून, उनका खून पानी” ।
चाहे कोई व्यक्ति रुपये पेसे से ईतना मजबुत हो या ना हो, पर कुछ रिश्तेदार (अब हर फेमेली में कुछ तो एसे होते ही हैं,आप भी तो जानते हें) तो उनसे व उनके परिवार वालों से बडी बडी उम्मीदें लगाते हें, व कुछ भी कसर पडी नहीं कि फिर – कोप भवन का सहारा ले के बैठ जाते है। उदाहरण के तौर पर जेसे किसी के घर शादी है तो रिश्ते नातेदार आए ही हुए होते हें अब घर पर महाराज सबके लिये खाना बना रहा होता हे तो इतनें में से एक महिला कहती है – महाराज क्या सब्जी बनायी हे ? महाराज बोलते हें की आलु मटर । अब वह महिला यह कहती है कि अरे में तो बताना ही भुल गई थी, मेरे तो जमींकन्द के सोगन्ध है(यानी वे जमीन के अन्दर पेदा होने वाली फल सब्जियां नहीं खाती, अब उन चाची या तायी के लिये अलग से कुछ बनाओ नहीं तो नाराज होना का पुरा ईतंजाम है) अब उनके लिये महाराज कोई इतंजाम करे ईससे पहले 10 – 20 में से 3 महिलाएँ कहती है कि कि हमारे तो व्रत, या उपवास है, कुछ सेगारी चिवडा वगेरह बनवाना । किसी को क्या तकलीफ हे तो किसी को क्या । अरे किसी की शादी में दो चार दिन के लिये जाना आना है पर लोग थोडा सा भी एडजस्ट नहीं कर सकते है् क्या ? सबको झेलते झेलते बेचारा जजमान तो वेसे ही आधा रह जाता है। सबको बुलाओ, उनके नाज नखरे उठाओ फिर भी कोई ना कोई कसर पड ही जाती है मेहमान लोगों को, तो उन्हे मनाओ भी।
इधर रही सही कसर बैंड बाजे वाले निकाल देते है, बैंड बाजे वाले पता नहीं किस सुर ताल में गा, बजा रहे हैं, पता ही नहीं चलता। केसे ये अच्छे अच्छे गानों का बैड बजा देते हें कि बस पुछो मत । फिर भी लोग कुद रहे हैं नाच रहे हैं। कभी नागिन डांस तो कभी पंगाब का भंगडा चल रहा हे व जब तक बैंड बाजे वाले घर तक पहुंचे तो वहां घरबा। इधर हम ईन्हीं सब मुशकिलों से डरे जाते है व कल्पना करते है कि यदि एसा हो तो क्या हो। पता नहीं क्या होगा शादी के दौरान,पर यह तलवार तो हमरे जेसे सभी कंवारों के सर के उपर लटकी हुई है। भगवान सबको सदबुद्धी दे ।
अगर आपको ये पोस्ट अच्छी लगी है तो इंतजार किजीये । जल्द ही हम “शादी के दौरान के चन्द वाकये” का पार्ट 2 भी लिखने वाले हैं।
SHUAIB // Feb 21, 2007 at 6:11 am
शादीयों का सीज़न सुनकर बहुत अच्छा लगा। अगले पार्ट का इन्तेज़ार है
प्रियंकर // Feb 21, 2007 at 7:58 am
बैंड की धुन पर नागिन डांस करने वाले नाच-नाच कर म्युनिसिपैलिटी का काम हल्का कर देते हैं सड़क साफ़ करके .
himanshu // Feb 21, 2007 at 3:09 pm
हे हे … किसी की शादि होते देख मुझे तो ऐसे लगता है की बेचारे दुल्हे को सूली पर चढाया जा रहा हो ….
बेचारों का उदास चेहरा देख बहुत हंसी आती है :)
रवि // Feb 22, 2007 at 1:37 am
“… इधर हम ईन्हीं सब मुशकिलों से डरे जाते है व कल्पना करते है कि यदि एसा हो तो क्या हो। पता नहीं क्या होगा शादी के दौरान,पर यह तलवार तो हमरे जेसे सभी कंवारों के सर के उपर लटकी हुई है।..”
बंधु कुछ रीवॉल्यूशन, कुछ क्रांति करो. आप जैसे युवा कुछ नहीं करेंगे तो फिर कौन करेगा.
और, प्रवचन देने से पूर्व आपको बता दें कि हमने भी कुछ ऐसा ही क्रांति किया था- न भांगड़ा, न बैंड, न बारात और न नाच-गाना.
chandra bhan // Jan 2, 2008 at 5:32 am
you are very good. this is a golden chance for us to know the district.