राजसमन्द कहने को तो बडा अमीर शहर माना जाता है, क्यों की पुरे राजस्थान में सबसे ज्यादा रिवेन्यु यहीं से सरकार को मिलती है, पर यहां के लोगों की सोच तो उरी बाबा (हालांकी हम खुद भी यहीं के रहने वाले हैं और यहीं की मिट्टी् का एक हिस्सा हैं) यहां भी गिफ्ट की दुकाने सज गई है, बडी साईज के गुलाब तो पिछले बार भी कम पड गए थे, शायद ईस बार भी एसा ही हो यह बात हमें भी कुछ खास सम्पर्क सुत्रों से विदित हुयी थी ।
हमारे स्कुल के समय में भी को एजुकेशन थी, पर तब भी क्लास में जो लडका लडकियों से बातें करता व उनके आगे पीछे घुमता था, उसे दुसरे लडके अच्छा नहीं माना करते थे। ईस प्रकार के (लडकियों के पीछलग्गु) लडकों को दुसरे लडके चिढ़ाते थे व छेडते थे, कभी कभी खास तौर से परोडियां बनायी जाती थी,व बकायदा स्कुल के ग्राउंड या स्टेडियम के उपर भव्य (नाश्ते पानी सहित) अंनत्याक्षरी का आयोजन किया जाता था, जिनमें पेरोडियों का जम के प्रयोग किया जाता था व उन खास किस्म के लडकों को छेडा जाता था । तब तो बहुतों को ये भी पता नहीं था कि ये वेलेन्टाईन डे भी क्या भला ना नाम है।
पर धीरे धीरे यहां भी विकास का आगाज् हुआ है और यहां भी ये वेलेन्टाईन डे मनाया जाने लगा है। लडके लडकियों को कार्ड व गिफ्ट दे रहें हैं तो लडकियां कडको को यानी कि लडको को। घुमने फिरने के स्थल भी आज वेलेन्टाईन डे के उपलक्ष में भरे भरे से ही रहते हैं। यहां भी लडकियां सुबह होते ही चश्मा लगाये अपनी अपनी स्कुटियां ले ले कर निकल पडती है स्कुल कालेज की ओर, कुछ कामकाजी महिलाएं भी अपने अपने वाहनों से आती जाती है । चंद सालों पहले तो कोई महिला या लडकी स्कुटर या कुछ भी वाहन चलाती हुई दिख जाती थी तो जैसे हमने कुछ अजुबा देख लिया हो पर आजकल एसा नहीं है, अरे भई ईक्कीसवीं सदी है।
सुना है कि बजरंग दल वाले अब पीछे पड गए है, वे माला वाला व पंडितजी को साथ ले कर ही घुम रहें है तब तो आशिको की खेर नहीं, आखिर वो सही भी तो कह रहें हे कि ये पाश्चात्य संस्कृति के कारण भारत के लोग अपनी परम्पराएं भुलते जा रहै हे। उन आशिक मिजाजी लोगों ने कभी अपने मां बाप को भी कोई गिफ्ट या कार्ड ले जा करके दिया है, जो अपने प्रेमी प्रेमिकाओं पर ईतना लुटा रहे है। वैसे हम वेलेन्टाईन डे के खिलाफ नहीं है व ईतने पथ्थरदिल हम नहीं हैं अपने तो वो वाला हिसाब है कि “कोउ नृप होई अपुन को का हानी”।
आईये इस बार कुछ नया करने की सोचिये, लिजीये कुछ टिप्स –
अपने प्रिय को कम से कम ईस दिन, हर घंटे एक एस एम एस कीजीये 12 घंटे में 12 रुपये का खर्चा बस ।
कार्ड, फुल, गिफ्ट सब पुराने हुए, अब की बार अपने प्रिय को ईन्टरनेट से अच्छा सा ई ग्रिटिगं कार्ड भेजीये ।
ईस दिन व्यस्त नहीं रहे, सब काम बाद में, आज का दिन अपने प्रिय के लिये बस ।
मनचाहे वाद्य पर अपने प्रिय के पसंदीदा गाने का (कम से कम) एक अतंरा बजा कर उसे सरप्राईज दें ।
अन्तिम – अगर ये अग्रलिखित कुछ ना कर सकें तो मेरे जेसे महान आलसी के पास आ जाएं व ब्लागिंग में नए आईडियाज् दें व मदद करें ।
श्रीश शर्मा 'ई-पंडित' // Feb 14, 2007 at 7:00 pm
ईक्कीसवीं सदी में ईस चिट्ठे पर ईस पोस्ट में ईन बढ़िया मजेदार टिप्स को पढ़कर मजा आ गया। हमारी कोशिश होगी कि हम भी ईस पोस्ट पर दिए गए ईन टिप्स को अपनाकर ईस दिन को फायदा उठाएं।