ऋषि अष्टावक्र के जीवन की एक घटना:
राजा जनक मे काल में अष्टावक्र जी नाम के एक बहुत विद्वान संत थे, बडे ही महान ऋषि थे, पर शारिरिक रुप से थोडे टेढ़े मेढ़े थे, आप और हम कह सकते हैं कि वे अपने शरीर में कुल मिला कर आठ जगह से टेढ़े मेढ़े थे | कहते हैं कि राजा जनक की सभा में वे एक बार आये और तब उनकी चाल ढ़ाल, रंग रुप देख कर बहुत से दरबारी हंस पडे |
अकारण दरबारियों के हंसने का कारण वे जान चुके थे कि ये लोग मेरे शरीर को देख कर हंस रहे हैं, और तब अष्टावक्र जी नें कहा मर्खों चमडी को देख कर तो चमार हंसा करते हैं तुम जेसे दिखावटी सभ्य लोगों और चमारों में मुझे कोई अंतर दिखाई नहीं पडता | अष्टावक्र के क्रोध से दरबारियों की घिग्घी बंध गयी, की कहीं ये ऋषि गुस्से ही गुस्से में हम सभी को कोई श्राप ना दे दे | फिर राजा जनक के कहने पर सभी नें तत्क्षण उनसे माफी मांगी | सच भी है किसी कि शक्ल सूरत या दिखावे पे ना जाओ और कुछ ए॓सा कृत्य ना करो की बाद में पछतावा हो |
ashok bhagat // Jan 17, 2015 at 12:19 pm
kahani me romanchak kuchh nahi laga.
main manta hoon ki laghu kahani me har chiz nahi milta.
per laghu katha itni bhi laghu nahin honi chahiye ki use padhne se ye lage ki diwaar per likhi line padh raha hoon
krishna kumar sahu // Feb 24, 2017 at 5:05 am
apke yah vichar achhe lge hain kqnki app logon tak achhi baton ko phunchane kam krte hain jisse logon ko gyan milta hai
thank you